वास्तव में हिंदी की स्थिति क्या है?

 शीर्षक - वास्तव में हिंदी की स्थिति क्या है ?


वास्तव में हिंदी की स्थिति क्या हैै? इसमें असमंजस की स्थिति है आजकल जो छात्र विज्ञान शिक्षक से पूछते हैं गुरुजी गति क्या तो गुरुजी प्यारी सी हिंदी में जवाब देते हैं गति का मतलब मोशन , जब गुरु जी से चर्चा होती है कि आप विज्ञान नहीं अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं तो गुरु जी बताते हैं बिना अंग्रेजी के विज्ञान कहां? और गलती से अगर हम उन्हें गुरुजी बुलाते हैं तो वो हम पर भड़क जाते हैं क्योंकि उन्हें तो सर जी पसंद आते हैं । अच्छा अब देखिए बॉलीवुड बात करेें तो बॉलीवुड वाले भी हिंदी की रोटी खाते हैं पर हिंदी बोलने से कतराते हैं और अंग्रेजी बोल कर अपनी छवि बेहतर बनाते हैं सामान्य लोग भी हिंदी बोलते बोलते बीच-बीच में अंग्रेजी को घुसेड़ देते हैं ऐसा इसलिए करते हैं ताकि सामने वाला उन्हें बेवकूफ समझने की बेवकूफी ना कर बैठे । और अंग्रेजी बोल कर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं तथा व्यक्तित्व में बिल्कुल वैसा ही निखार आ जाता है जैसे बूढ़ी औरत ब्यूटी पार्लर से निकली हो और देखने वाला उस पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हो । ऐसे लोगों के लिए अंग्रेजी उनके व्यक्तित्व का पंचर बनाने का काम करती है । ये लोग हिंदी व अंग्रेजी पर अपना समान अधिकार दर्शाने की कोशिश में दोनों ही भाषाओं से हाथ धो जाते हैं। अब बात करें हम अखबार वालों की तो यहां अखबार देने वालों को "हिंदी वाला" कहकर उनकी उदारता का मजाक उड़ाया जाताा  है ।आप चाहे कितना भी अंग्रेजी में बात कर लेें, लेकिन भीतर जब क्रोधाग्नि प्रज्वलित होती हैै। तो सामने वाले के पारिवारिक सदस्यों को हिंदी में याद करने पर जो सुकून मिलता है वह तो अंग्रेजी कभी नहीं दे पाएगी ।

इस हिंदी दिवस के अवसर पर भी लोग हिंदी दिवस का निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में छपाने लगे हैं, अगर बात करें गांव के बुजुर्गों की जब हम उनसे कहते हैं कि मतदान करने चलना है तो कहते हैं हमारे पास कुछ नहीं है तो क्या दान करें लेकिन जब उनसे बोलते हैं कि वोट डालने चलना है तो तुरंत ही समझ जाते हैं ।हमारे यहां तो छात्रों का हिंदी के प्रति इतना लगाव है कि वह बोलते हैं हिंदी हमारी मॉम है ,वी लाइक हिंदी, वी लव हिंदी । और अब तो हमारी सरकार भी इन्हें मध्याह्न भोजन के बजाय मिड डे मील खिलाने में विश्वास रखती है।  और मैंने तो कई स्कूलों के ऐसे प्रधानाचार्य जी को देखा है कि बच्चा अगर हिंदी बोलते मिल जाए तो उस पर अर्थदंड (फाइन) उतार देते हैं , और खुद भी हिंदी दिवस पर अपने छात्रों को संबोधित करते हुए एवरीवन रेस्पेक्ट हिंदी कहते हैं ।

आजकल नौकरियों के फॉर्म में हिंदी को इतना सम्मान मिला है कि बस नौकरी का नाम ही हिंदी में रहता है ।आज हमारे राष्ट्र के लोग गहराई से नहीं सोचते बल्कि डीप थिंक करते है, और ये सॉरी तो बस रोज हमारे कानों में दर्द करता है ,आज कोई सोता नहीं बल्कि स्लीप करता है , धन्यवाद का स्थान भी थैंक्स ही ले लेता है।
        हमें तो यहां तक पता चला है कि आज हिंदी दिवस नहीं बल्कि हिंदी डे मनाया जा रहा है। आज हमारे सिर पर अंग्रेजी का दिखावा ऐसे सवार है जैसे चीन के सस्ते सामान का भूत सवार हो । हमारे यहां नेताजी जब हिंदी दिवस का भव्य आयोजन करते हैं तो विदेशी मेहमान बुलाते हैं, जिनका दूर-दूर तक हिंदी से कोई नाता ही नहीं होता है। और अपने मनोरंजन के लिए विदेशी पॉप गायिका बुलाते हैं, हालांकि उसके द्वारा प्रस्तुत गीत को तो नहीं समझ पाते हैं पर उसके शारीरिक निमंत्रण से गीत के भाव को समझ कर भाव विभोर हो जाते हैं । शुक्र है हमारे देश के नेता ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं नहीं तो वह भी अपने वाहनों पर सांसद, विधायक के बजाय एमपी और एमएलए लिखवा देते और हम समझ ही नहीं पाते। 
स्थिति यह है कि तमाम स्कूलों में जब सुबह ईश्वर की स्तुति होती है तो अंग्रेजी से ही प्रारंभ होती है पता नहीं ईश्वर उसे समझ भी पाता होगा या नहीं और नेता जी तो हिंदी दिवस के भाषण में हिंदी के प्रति इतने समर्पित दिखते हैं, कि हिंदी के सम्मान में कहते हैं मेरी पब्लिक से रिक्वेस्ट है ,वह हिंदी अपनाएं। 
कुछ लोग तो हिंदी दिवस की शुभकामनाएं भी "हैप्पी हिंदी डे" बोल कर दे रहे होते हैं जब भी मेरे पास ऐसी शुभकामना आती है तो मुझे चिंतनशील मुद्रा में मजबूरन मुझे उन बुद्धिजीवियों का आभार व्यक्त करना पड़ता है । हमारे यहां तो 14 सितंबर को मातृभाषा का स्मरण मात्र करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है।
आज जो हिंदी दिवस पर हिंदी को सर्वोच्च बोल रहे, वही कल अंग्रेजी का महिमामंडन करेंगे। फिर भी मुझे हिंदी भली चंगी लग रही उसे भला किसकी नजर लगी है। लेकिन आपकी नजर में हिंदी की वास्तविकता क्या है ? जरूर बताइएगा।
    
-अजय एहसास 
सुलेमपुर परसावां 
अंबेडकर नगर (उ०प्र०)

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