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Showing posts from July, 2021

रिजल्ट तो हमारे जमाने में आते थे

 रिजल्ट तो हमारे जमाने में आते थे, जब पूरे बोर्ड का रिजल्ट 17 ℅ हो, और उसमें भी आप ने वैतरणी तर ली हो (डिवीजन मायने नहीं, परसेंटेज कौन पूँछे) तो पूरे कुनबे का सीना चौड़ा हो जाता था। दसवीं का बोर्ड...बचपन से ही इसके नाम से ऐसा डराया जाता था कि आधे तो वहाँ पहुँचने तक ही पढ़ाई से सन्यास ले लेते थे। जो हिम्मत करके पहुँचते, उनकी हिम्मत गुरुजन और परिजन पूरे साल ये कहकर बढ़ाते,"अब पता चलेगा बेटा, कितने होशियार हो, नवीं तक तो गधे भी पास हो जाते हैं" !! रही-सही कसर हाईस्कूल में पंचवर्षीय योजना बना चुके साथी पूरी कर देते..." भाई, खाली पढ़ने से कुछ नहीं होगा, इसे पास करना हर किसी के लक में नहीं होता, हमें ही देख लो... और फिर , जब रिजल्ट का दिन आता। ऑनलाइन का जमाना तो था नहीं,सो एक दिन पहले ही शहर के दो- तीन हीरो (ये अक्सर दो पंच वर्षीय योजना वाले होते थे) अपनी हीरो स्प्लेंडर या यामहा में शहर चले जाते। फिर आधी रात को आवाज सुनाई देती..."रिजल्ट-रिजल्ट" पूरा का पूरा मुहल्ला उन पर टूट पड़ता। रिजल्ट वाले #अखबार को कमर में खोंसकर उनमें से एक किसी ऊँची जगह पर चढ़ जाता। फिर वहीं से नम्ब...

अहंकार

 वेश्या ने भिक्षु को रोका. बोली, "मेरे घर रुक जाओ वर्षाकाल में।"   भिक्षु ने कहा, "रुकने में मुझे अड़चन नहीं है,... ' मैं बुद्ध का शिष्य हूं। बुद्ध गांव के बाहर ही हैं, अभी पूछकर आ जाता हूं।" वेश्या थोड़ी चिंतित हुई। कैसा भिक्षु ! इतनी जल्दी राजी हुआ? वह भिक्षु गया। उसने बुद्ध से कहा कि,  "सुनिए, एक आमंत्रण मिला है, एक वेश्या का। वर्षाकाल उसके घर रहने के लिए। जो आज्ञा आपकी हो, वैसा करूं।"   बुद्ध ने कहा,  "तू जा सकता है। निमंत्रण को ठुकराना उचित नहीं।" सनसनी फैल गई भिक्षुओं में। दस हजार भिक्षु थे, ईष्या से भर गए। कई को तो, लगा कि सौभाग्यशाली है। तो वेश्या ने निमंत्रण दिया वर्षाकाल का। और हद्द हो गई बुद्ध की भी कि उसे स्वीकार भी कर लिया और आज्ञा भी दे दी।      एक भिक्षु ने खड़े होकर कहा कि  "रुकें ! इससे गलत नियम प्रचलित हो जाएगा। भिक्षुओं को वेश्याएं निमंत्रित करने लगें, और भिक्षु उनके घर रहने लगें, भ्रष्टाचार फैलेगा। यह नहीं होना चाहिए।" बुद्ध ने कहा, "अगर तुझे निमंत्रण मिले, और तू ठहरे तो भ्रष्टाचार फैलेगा। तू वैश्या के घर ठहरन...

हाय ये चाय ।।

 चाय प्रेमियों को समर्पित चाय एक शाकाहारी नशा है तो क्यों न शराब की बजाय चाय को जज़्बातों से जोड़ा जाय तो अर्ज़ किया है ________________________ एक तेरा ख़याल ही तो है मेरे पास. वरना कौन अकेले में बैठे कर चाय पीता है । ________________________ आज लफ्ज़ों को मैने शाम की चाय पे बुलाया है बन गयी बात तो ग़ज़ल भी हो सकती है । ________________________ ठान लिया था कि अब और नहीं पियेंगे चाय उनके हाथ की पर उन्हें देखा और लब बग़ावत कर बैठे । ________________________ मिलो कभी चाय पर फिर क़िस्से बुनेंगे तुम ख़ामोशी से कहना हम चुपके से सुनेंगे ! ________________________ चाय के कप से उड़ते धुंए में मुझे तेरी शक्ल नज़र आती है तेरे इन्ही ख़यालों में खोकर, मेरी चाय अक्सर ठंडी हो जाती है। ________________________ हल्के में मत लेना तुम सांवले रंग को दूध से कहीं ज़्यादा होते हैं शौक़ीन चाय के। ________________________ फिज़ां में घुल रही है महक इलायची की आज बारिश भी चाय की तलबगार हो गई। ________________________ अदाएं तो देखिए जनाब चायपत्ती की ज़रा दूध से क्या मिली शर्म से लाल हो गई ।