परिवार
परिवार मनुष्य जीवन की सबसे प्रमुख और सबसे प्रथम इकाई होती है। जिसमें माता-पिता के रूप में स्वयं वो निराकार ब्रह्म, साकार रूप में विराजमान रहता है।। सच ही कहा गया है। कि जिस घर में माँ-बाप हँसते हैं, उसी घर में भगवान बसते हैं।। संस्कारों से परवरिश और परवरिश से परिवार का परिचय मिल जाता है, एक आदर्श परिवार के बिना एक आदर्श जीवन का निर्माण कदापि संभव ही नहीं मानव जीवन के संस्कारों की प्रथम पाठशाला का नाम ही परिवार है। जिस प्रकार पहाड़ से टूटा पत्थर और पेड़ से गिरा पत्ता कभी सलामत नहीं रह सकते हैं, उसी प्रकार परिवार से बिछड़ा व्यक्ति भी कभी सलामत नहीं रह सकता। बिना भाई के साथ के रावण जैसा महाबली भी हार जाता है।। और भाई का साथ पाकर वनवासी होने पर भी श्री राम जीत जाते हैं। इसलिए अपने अहम का त्याग करके सदा परिवार के साथ मिलकर रहने का प्रयास करना चाहिए।। एक लकड़ी अकेले आसानी से टूट जाती है। और उन्हीं लकड़ी को जब बंडल बनाकर तोड़ने लगते हैं।। तो बहुत मुश्किल और कठिन हो जाता है। इसी प्रकार जब हम अकेले पड़ जाते हैं। तो कोई भी आसानी से हमें तोड़ सकता है।। मगर एक होते ही तोड़ने वाला स्वयं टूट जाता है। परस्पर प्रेम, सम्मान और सहयोग की भावना के साथ-साथ कर्त्तव्य निष्ठा से ही मकान घर और घर परिवार बन जाता है।। वर्तमान परिदृश्य में अथवा आज की इस सदी में हम इकट्ठे होकर न रह सकें कोई बात नहीं मगर कम से कम एक होकर जरूर रह सकते हैं। परिवार के साथ रहें, संस्कार के साथ रहें।। मुसीबत में खड़ा जो साथ बन दीवार होता है। हमारा हौसला हिम्मत वही परिवार होता है।।
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